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BSF PROMOTION : पदोन्नति का संकट, कैसे पार करें प्रमोशन का बॉर्डर ?

BSF PROMOTION :: पदोन्नति का संकट, 350 से अधिक कमांडेंट की औसत आयु 50-55 साल, इस उम्र में बॉर्डर पर कैसे करे लीड !

BSF PROMOTION : BSF में CRPF की तरह ही पदोन्नति को लेकर कैडर अधिकारीयों में रोष वयाप्त है| यूपीएससी से सीधी भर्ती के जरिए BSF में बतौर सहायक कमांडेंट के पद पर आने वाले अधिकारियो को मुश्किल से 14 साल में पहली पदोन्नति मिल रही है |

BSF जिसे ‘इंडियास फर्स्ट लाइन ऑफ़ डिफेन्स ‘ कहा जाता है, के कैडर अफसरों के लिए पदोन्नति का संकट गहराता जा रहा है | हालत ऐसी हो गई है की बल में साढ़े तीन सौ से अधिक कमांडेंट ऐसे है, जिनकी आयु 50-55 साल के बीच है | गिने चुने ही कमांडेंट ऐसे होंगे, जिनकी आयु पचास साल के पार नहीं पहुंची है|

बल के पूर्व अफसरों ने यह सवाल उठाया है कि उम्र के इस पड़ाव पर कमांडेंट स्तर के इस अधिकारी बॉर्डर पर किस तरह से ऑपरेशन को लीड करते होंगे | BSF में पदोन्नति का संकट, यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की सहायक कमांडेट के पद पर भर्ती हुवा वयक्ति 14 साल में डीसी, 21 साल में 2-I/C और उसके बाद कमांडेंट बनने के लिए उसे 10 साल लग रहे है | अगर यही रफ़्तार जारी रही तो अनेक कैडर अधिकारी बिना DIG और IG बने ही रिटायर हो जायेंगे |

BSF का पिछला कैडर रिव्यु 21 सितम्बर 2016 को हुवा था | उसेक बाद अभी तक कैडर रिव्यु नहीं हो सका | कैडर रिव्यु पर रिपोर्ट देने के लिए अब BSF DG ने 12 सदस्यीय एक कमेटी गठित की है | यह कमेटी 31 मार्च 2025 तक अपनी रिपोर्ट देगी |

BSF में ग्रुप ए (जीडी) के चौथे कैडर रिव्यु के लिए इसी माह एक कमेटी गठित की गई है | यह कमेटी कैडर रिव्यु को लेकर BSF DG को अपनी रिपोर्ट देगी | BSF में पदोन्नति को लेकर कैडर अफसरों में रोष क्यों है, पदोन्नति में किस वजह से देरी हो रही है, इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा और फाॅर्स में पदोन्नति को लेकर जो ठहराव बना हुवा है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है |

इसके अलावा कैडर अफसरों को समय पर पदोन्नति न मिलने के कारन किस तरह के वित्तीय फायदों से वंचित रहना पड़ता है | बल में VRS कम से कम कैसे हो, आदि बाते भी रिपोर्ट में शामिल रहेगी |

इस कमेटि के चैयरमेन संजय सिंघल IPS, SDG (HR) को बनाया गया है | सदस्यों में मकरंद देउस्कर IPS, IG, (PERS), दिनेश कुमार बूरा, आईजी, उमेद सिंह, डीआईजी, युवराज दुबे, कमांडेंट अमिताभ पवार, टूआईसी अनुभव कुमार, मणिशंकर झा, डिप्टी कमांडेंट रविंदर बलूनी, भारत राज, सहायक कमांडेंट कुमार अभिषेक, रमन कुमार और इंस्पेक्टर जीडी अमूल कुमार शामिल है | केंद्रीय गृह मंत्रालय ले BSF के पिछले कैडर रिव्यु 21 सितम्बर 2016 को मंजूरी दी थी |

DOPT के नियमानुसार, हर पांच वर्ष में कैडर रिव्यु होना जरुरी है, लेकिन BSF में यह कैडर रिव्यु अभी तक नहीं हो सका है | DOPT के नियमों के तहत यह कैडर रिव्यु 2021 में होना चाहिए था |

BSF में CRPF की तरह ही पदोन्नति को लेकर कैडर अधिकारीयों में रोष व्याप्त है | यूपीएससी से सीधी भर्ती के जरिए BSF में बतौर सहायक कमांडेंट के पद पर आने वाले अधिकारीयों को मुश्किल से 14 साल में पहली पदोन्नति मिल रही है | अगली पदोन्नति यानि टूआईसी का पद 21 साल में मिलता है | कुछ लोगो को तो इससे भी जायदा समय लग रहा है |

कमांडेंट की बात करे तो इसके लिए औसत आयु 53 साल तक पहुँच रही है | सूत्रों के मुताबिक, अधिकांश कमांडेंट पचास वर्ष के पार पहुँच चुके है | जब 55 साल के कमांडेंट है तो वे DIG कब बनेंगे। अगर बन गए तो कितने साल काम करेंगे। इस स्पीड से कैडर अधिकारियों के लिए आईजी और एडीजी बनने का सपना तो टूटा ही समझो।

पिछले दिनों BSF के नौ कैडर अधिकारियों ने एक झटके में नौकरी छोड़ दी थी। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ‘ VRS’ लेने वाले अफसरों में एक कमांडेंट, दो टूआइसी, एक डीसी और पांच सहायक कमांडेंट शामिल है। एक साथ नौ अफसरों का फोर्स को अलविदा कहना, न केवल BSF अपितु दूसरे केंद्रीय बलों के अफसरों के बीच भी चर्चा का विषय बन गया था।

केंद्रीय गृहमंत्रालय ने पिछले सप्ताह उक्त  नौ अफसरों की VRS स्वीकार कर ली। BSF के पूर्व ADG एस के सूद कहते हैं, इसके पीछे कोई तो वजह रही है। ऐसे तो कोई अपनी जॉब को यूं बीच राह में नही छोड़ता। पदोन्नति में स्थिरता, वित्तिय स्थिति और बेहतर कैरियर का विकल्प, VRS के पीछे कुछ ऐसे ही कारण रहे होंगे।

VRS लेने वालों में BSF के सहायक कमांडेंट पंकज कुमार राणा, सहायक कमांडेंट कमलेश मीणा, सहायक कमांडेंट परमानंद सेंकेंड इन कमांड विपिन कुमार, डिप्टी कमांडेंट भूपेश जोशी, कमांडेंट/सीएमओ शिव मोहन सिंह, सहायक कमांडेंट अजय पाल सिंह और टूआईस अभिमन्यू कुमार सिंह शामिल हैं।

पूर्व एडीजी एस के सूद बताते हैं, BSF में, खासतौर पर जूनियर स्तर पर कैडर अधिकारियों में पदोन्नति को लेकर परेशानी देखी जा रही है। अगर समय पर पदोन्नति मिलती रहे तो कोई भी अफसर नौकरी छोड़ने की नही सोचता। किन्ही कारणों से आर्थिक फायदों में पिछडऩा, यह भी एक वजह हो सकती है।

CRPF और BSF में तो डेढ़ दशक में पहली पदोन्नति मिल रही है। DOPT ने 2008-09 के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों में 0GAS यानि ‘आर्गेनाइजड ग्रुप ए सर्विस’ के तहत सेवा नियम बनाने के आदेश जारी किए थे। अभी तक सर्विस रूल नही बनाए गए हैं। केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बावजूद कैडर अफसरों को कोई राहत नही दी। ऐसे में संभव है कि कैडर अफसरों को कोई दूसरा बेहतर विकल्प मिल रहा हो। नतीजा, वे ‘ BSF’ को अलविदा कह देते हैं।

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BSF के पूर्व आईजी भोला नाथ शर्मा बताते हैं, मौजूदा समय में तकरीबन हर रैंक पर ठहराव सा हैं। दूसरी और, कैडर अफसरों को वित्तिय फायदे भी पूरे नहीं मिलते। वें बल की नीतियों से संतुष्ट नही होते। कैडर अफसरों को एक ही रैंक में लंबे समय तक काम करना पड़ता है।

जब उनकी शिकायत दूर नहीं होती तो वे दूसरा विकल्प खोजते है। कुछ बलों में पदोन्नति तेज गति से हो रही है, लेकिन BSF और CRPF में यह रफ्तार बहुत धीमी है। ये दोनों बड़े बल हैं। बड़े बैच आने के कारण पदोन्नति ब्लॉक होती है। केंद्र सरकार इन बलों में तय समय पर पदोन्नति देने के बारे में गंभीरता से सोचे।

BSF PROMOTION : क्या रहा है इतिहास ?

पूर्व अफसरों के मुताबिक CRPF के पहले महानिदेशक वी जी कनेत्कर ने कहा था, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न हो। दूसरी तरफ, 1955 के फोर्स एक्ट मे ली ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इतना ही नहीं,  1970 में तत्कालीन होम सेक्रेटरी लल्लन प्रसाद सिंह, जेएस, BSF व CRPF के डीजी ने भी लिखा था की केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न हो। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में कैडर अधिकारियों को ही नेतृत्व करने का मौका दिया जाए। ऐसे में वो पदोन्नति के जरिए इन बलों में वे आगे बढते रहेंगे और टॉप तक पहुंच पाएंगे। पदोन्नति का संकट भी नहीं होगा।

पूर्व कैडर अधिकारियों के मुताबिक, 1959 में पहली बार आईपीएस अधिकारी, कमांडेंट बन कर केंद्रीय सुरक्षा बलों में आए थे। ये भी तब हुआ, जब आर्मी ने कहा की हम अफसर नही देंगे। हमें अपनी जरूरतें पूरी करनी है। इसके बाद भारत सरकार ने निर्णय लिया की इन बलों में Iअफसरों की भर्ती शुरू की जाए। डीएसपी पद पर भर्त्ती शुरू की जाए। डीएसपी के पद पर भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद 1960 में पहला बैच ट्रेनिंग के लिए एनपीए में पंहुचा। वहां पर आइपीएस के साथ कैडर अफसरों की ट्रेनिंग हुई।

1962 में लड़ाई छिडी तो इन बलों में इमरजेंसी कमीशंड ऑफिसर भेजे गए। लड़ाई खत्म होने के बाद वे वापस लौट गए। बाद के वर्षो में CRPF और BSF ने खुद के चार सौ से अधिक अफसर तैयार कर लिए। DG BSF के एफ रूस्तम ने कहा था, केंद्रीय सुरक्षा बलों में आइपीएस अफसरों के लिए पदों का आरक्षण न किया जाए।इसका 1955 के फोर्स एक्ट में भी प्रावधान नहीं हैं। हम अपने अफसर तैयार करेंगे, जो कुछ समय बाद फोर्स का नेतृत्व करेंगे। इसके बाद 1968 में CRPF के पहले महानिदेशक वी जी कनेत्कर ने कहा था, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न हो।

तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह ने भी दोनों बलों के डीजी की बात को सही माना। सिंह ने कहा, शुरू में बीस फीसदी अफसर आर्मी व आइपीएस कैडर से ले लो। थोड़े समय बाद डीआईजी, कमांडेंट और सहायक कमांडेंट के पद कैडर को सौंप दिए जाए, लेकिन आईपीएएस के लिए वैधानिक आरक्षण न किया जाए। 1970 में गृह मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर ‘ संगठन’ जेसी पांडे ने लिखा, इन बलों में आइपीएस के लिए पद फिक्स मत करो। इससे कैडर अफसर के मौके प्रभावित होंगे।

CRPF DG ने कहा, अब केवल वर्किंग फॉर्मूला ले लो जो बाद में नई व्यवस्था के साथ परिवर्तित हो जाएगा। आईपीएस, आर्मी और स्टेट पुलिस, इन तीनों अफसरों के लिए सुरक्षा बलों में डीआईजी, कमांडेंट और एसी के पद पर आरक्षण न हो। कैडर के पूर्व अफसरों के मुताबिक, उसके बाद फाइल बदल गई। उसी साल यह ऑर्डर निकाला गया कि केंद्रीय बलों में डीजी के 100 फीसदी पद, 100 फीसदी आइजी, 75 फीसदी डीआईजी, 40 फीसदी सीओ और एसी के10 फीसदी पद आइपीएस को दिए जाएं।

समय के साथ इस कोटे में बदलाव होते रहे। साल 1997 में पहली बार CRPF के कैडर अफसरों को आईजी के 33 फीसदी पद मिले।2008 में आईजी के 50 फीसदी और डीआईजी के 80 फीसदी कैडर को मिल गए । 2009 में एडीजी के 33 फीसदी पद कैडर को दिए गए। 1970 से लेकर 2013 तो आईपीएस कैडर, इस मामले में कुछ नही बोला। कैडर अधिकारी, पदोन्नति के मोर्चे पर पिछडते. चले गए। उन्हें मजबूरन कोर्ट में जाना पड़ा।

2015 में हाइकोर्ट से जीते और 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जीत गए, लेकिन फिर भी नही सर्विस रुल नही बन सके। BSF के पूर्व एडीजी एसके सूद के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद केंद्र सरकार टालमटोल की नीति पर चल रही है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के हजारों अफसर प्रमोशन एवं वित्तिय फायदों में हुए भेदभाव को लेकर परेशान है।

जूनियर अफसरों को तो 15 वर्ष में पहली पदोन्नति नही मिल पा रही है। जिस तरह से केंद्र सरकार की दूसरी संगठित सेवाओं में एक तय समय के बाद रैंक या फिर उसके समकक्ष वेतन मिलता है, वैसा सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों को नही मिल पा रहा है।

BSF महानिदेशालय द्वारा कैडर अधिकारियों को यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि 31 मई तक पदोन्नति के आदेश जारी हो जाएं। कैडर रिव्यू  में 34 बैच तक टूआईसी, 26 बैच तक सीओ और 18 बैच तक डीआइजी, ऐसी पदोन्नति होने का दिलासा दिया जा रहा है। इस बावत कैडर अफसरों का कहना हैं की ये केवल सपना दिखाया जा रहा है। खैर देखते है की इस पैर्टन पर पदोन्नति किसे और कब तक मिलती है।

Source – amarujala

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