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Pahalgam Terror Attack : कहाँ हुई चूक, श्रीनगर में क्या आतंकियों का स्लीपर सेल एक्टिव हो गया है ?

PAHALGAM TERROR ATTACK

Pahalgam Terror Attack : सुरक्षा बलों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आतंकियों ने पहलगाम में जिस जगह पर हमला किया है, उसकी संरचना के बारे में निश्चित रूप से आतंकियों के पास सभी तरह की जानकारी थी। आतंकियों को सुरक्षा बलों एवं लोकल पुलिस की मूवमेंट के बारे भी पुख्ता सूचना रही होगी।

Pahalgam Terror Attack  : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में मंगलवार दोपहर को हुए आतंकवादी हमले में 26 लोग मारे गए हैं और 17 लोग घायल हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने तीन आतंकियों के स्कैच जारी किए हैं। इस हमले की जिम्मेदारी, पाकिस्तान के आतंकी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ की जम्मू कश्मीर में सक्रिय प्रॉक्सी विंग ‘द रजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने ली है। जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों के विश्वस्त सूत्रों का कहना है, भले ही घाटी में आतंकी संगठनों को दहशतगर्दों की संख्या बढ़ाने के लिए नई भर्ती का अवसर नहीं मिल रहा, लेकिन वहां मौजूद विदेशी एवं लोकल आतंकियों ने बड़ी संख्या में अपने ‘स्लीपर सेल’ तैयार कर लिए हैं। ये सेल, आतंकियों को सैन्य मूवमेंट की जानकारी मुहैया कराते हैं। पहलगाम सहित जम्मू कश्मीर के अधिकांश इलाकों में चाय बेचने वाले, पंक्चर लगाने वाले, ढाबा संचालक और ‘खच्चर-घोड़े व पोटर्स दिखाई पड़ते हैं। कहीं न कहीं इन्हें संदेह के दायरे से दूर रखना, इंटेलिजेंस चूक बन रहा है। इन्हीं में ही आतंकियों के ‘स्लीपर सेल’ शामिल रहते हैं। लिहाजा ये लोग, स्थानीय होते हैं, ऐसे में सुरक्षा बल भी इन पर ज्यादा शक नहीं करते हैं।

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Pahalgam Terror Attack : जम्मू कश्मीर के सुरक्षा से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, देखिये इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि घाटी और दूसरे क्षेत्रों में आतंकियों के ‘स्लीपर सेल’ मौजूद हैं।

उन्हें कहीं न कहीं, बड़े स्तर पर लोकल स्पोर्ट मिल रही है। चाय बेचने वाले, पंक्चर मेकेनिक, ढाबा संचालक और ‘खच्चर-घोड़े व पोटर्स वाले, पहले भी शक के दायरे में रहे हैं, लेकिन ये सब स्थानीय होते हैं, इसलिए सुरक्षा एजेंसियां इनके साथ ज्यादा सख्ती से पेश नहीं आती। इनकी मौजूदगी हर इलाके में रहती है। घने जंगल में भी ये लोग रहते हैं। अनंतनाग से पहलगाम की ओर मुख्य सड़क के आसपास ऐसी बहुत सी जगहें हैं, जहां पर्यटकों के छोटे-छोटे समूह प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए पैदल यात्रा करते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए घोड़ों एवं खच्चरों की भी मदद ली जाती है। इस कड़ी में ढाबा व चाय वाले भी मिल जाते हैं।

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Pahalgam Terror Attack  : सुरक्षा बलों से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आतंकियों ने पहलगाम में जिस जगह पर हमला किया है, उसकी संरचना के बारे में निश्चित रूप से आतंकियों के पास सभी तरह की जानकारी थी। आतंकियों को सुरक्षा बलों एवं लोकल पुलिस की मूवमेंट के बारे भी पुख्ता सूचना रही होगी। उन्हें पुलिस गश्त की टाइमिंग का भी पता होगा। आतंकियों को यह जानकारी भी रही होगी कि बैसरन घाटी में गश्त का शेड्यूल क्या रहता है। जिस वक्त हमला हुआ, वहां पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी नहीं थी। सूत्रों का कहना है कि हमले के दौरान कोई क्रॉस फायर भी नहीं हुआ। घास के मैदानों में भी खाने-पीने की दुकानें हैं। वहां स्थानीय लोगों द्वारा काम धंधा किया जाता है। इन ढाबों के आसपास कई पर्यटक मारे गए हैं। बताया जा रहा है कि कोई ढाबा संचालक और वहां काम करने वाले, आतंकियों का निशाना नहीं बनें। हमले के काफी देर बाद सुरक्षा बल वहां पहुंचे थे, तब तक सभी आतंकी, जंगलों की तरफ भाग चुके थे।

Pahalgam Terror Attack : सूत्रों के मुताबिक, हमले के दौरान क्रॉस फायरिंग न होने का सीधा मतलब यही था कि आसपास पुलिस या सुरक्षा बल नहीं थे।

इस जगह पर भारी संख्या में पर्यटक आ रहे थे तो उसके बावजूद वहां पर पुलिस चौकी तक दिखाई नहीं पड़ी। चाय की दुकान के मालिक या उसके किसी कर्मचारी को भी चोट नहीं लगी। आतंकियों को यह बात मालूम थी, इस क्षेत्र में फौरी तौर पर पुलिस मदद नहीं पहुंच सकती है। इसलिए उन्होंने पर्यटकों का धर्म पूछ कर उन्हें मारा। यानी दहशतगर्दों को वहां की सुरक्षा संरचना की जानकारी थी। आतंकियों ने जल्दबाजी में अंधाधुंध फायरिंग नहीं की।  सुरक्षा बलों को चाय बेचने वाले, पंक्चर लगाने वाले, ढाबा संचालक और ‘खच्चर-घोड़े व पोटर्स पर नजर रखनी चाहिए।

सड़क किनारे और घास के मैदानों के आसपास इन लोगों की उपस्थिति को लेकर पहले भी सुरक्षा एजेंसियों को सचेत किया जाता रहा है। साल 2020 में भी ऐसे कई अहम सबूत सुरक्षा एजेंसियों के हाथ लगे थे। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ ने आतंक का वह नया प्लान तैयार किया था। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के लॉन्चिंग कमांडर अब्दुल मन्नान उर्फ डाक्टर की आतंकवादियों के साथ हुई बातचीत को भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने इंटरसेप्ट किया था। उस बातचीत में कई सनसनीखेज खुलासे हुए।

आईएसआई एवं आतंकी संगठन व उनके स्लीपर सेल, भारतीय सैन्य बलों की हर मूवमेंट की जानकारी जुटाते हैं। तब यह बात सामने आई थी कि जम्मू-कश्मीर हाईवे, कठुआ, सांबा, डोडा, पहलगाम और दूसरे इलाकों में सड़क के किनारे पर स्लीपर सेल को पंक्चर लगाने की दुकान खोलने के लिए कहा गया है। साथ ही चाय और ढाबा तैयार करने की योजना बनाई गई। इन जगहों पर प्लास्टिक कवर में हथियार एवं संचार के साधन रखने का जुगाड़ तैयार किया गया।

जैश-ए-मोहम्मद के लॉन्चिंग कमांडर अब्दुल मन्नान और आतंकवादियों के बीच हुई बातचीत में पता चला था कि आईएसआई अब स्लीपर सेल के जरिए ज्यादा से ज्यादा भारतीय सैन्य बलों की मूवमेंट का पता लगाने की कोशिश में है। किस मार्ग से, कब और कितने सैन्य वाहन गुजरे हैं, उनमें जवानों की संख्या, हथियार, गोला बारुद व दूसरा साजो सामान, ऐसी जानकारी जुटाने के लिए हाईवे पर पंक्चर लगाने की दुकानें खोली जा रही हैं। यह भी पता चला था कि पंक्चर की दुकान से करीब दो किलोमीटर पहले कुछ नुकीली वस्तु सड़क पर डाल दी जाती है। उसी जगह पर ऐसा साइन बोर्ड लगा देते हैं, जिस पर लिखा होता है कि पंक्चर की दुकान दो किलोमीटर आगे है। यह सब आतंकी हमले को अंजाम देने के मकसद से किया गया था। पंक्चर की दुकानों की तरह ही सड़क किनारे चाय की दुकान और ढाबे खोले गए।

स्लीपर सेल को बाकायदा उनके काम का मेहनताना भी देने की बात हुई थी। वे किस तरह की जानकारी आईएसआई और आतंकी संगठनों को देते हैं, मेहनताना की रेंज इसी पर निर्भर करती है। सैन्य वाहन एक साथ चल रहे हैं, उनके बीच कितनी दूरी है, ये सब तथ्य जुटाने की जिम्मेदारी, स्लीपर सेल को दी गई थी। किसी इलाके में इंटरनेट की स्थिति कैसी है, यह जानकारी भी स्लीपर सेल देंगे। जो बातचीत इंटरसेप्ट हुई थी, उसमें इंटरनेट और लोकल पुलिस को लेकर कई तरह के सवाल पूछे गए। डोडा के आसपास मौजूद हिजबुल मुजाहिदीन के आंतकियों की जानकारी मांगी गई थी। आतंकियों के नए ठिकानों बाबत सूचनाओं का आदान प्रदान कोड वर्ड के जरिए करने की बात हुई।

 

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